Ghazal
#ग़ज़ल.....#غزل
चराग़ ए जिस्म बुझा है , बुझे नहीं हैं हम
ज़माने वालों से कह दो , मरे नहीं हैं हम
چراغِ جسم بُجھا ہے بُھجے نہیں ہیں ہم
زمانے والو سے کہہ دو مرے نہیں ہیں ہم
ये बात सच है के हम ने मकान बदला है
दिलों से आज भी लेकिन गए नहीं हैं हम
یہ بات سچ ہے کہ ہم نے مکان بدلا ہے
دلوں سے آج بھی لیکن گئے نہیں ہیں ہم
ग़लत जो बात है उसको ग़लत ही कहते हैं
तुम्हारी तरह तो अब तक हुए नहीं हैं हम
غلط جو بات ہے اس کو غلط ہی کہتے ہیں
تمھاری طرح تو اب تک نہیں ہوئے ہیں ہم
अभी से जश्न मनाने लगे हैं क्यों सब लोग
अभी तो जान से अपनी गए नहीं हैं हम
ابھی سے جشن منانے لگے ہیں کیوں سب لوگ
ابھی تو جان سے اپنی گئے نہیں ہیں ہم
क़ुबूल तेरी दुआएँ इसी लिए न हुईं
तेरे नसीब में शायद लिखे नहीं हैं हम
قبول تیری دعائیں اسی لئے نہ ہوئیں
ترے نصیب میں شاید لکھے نہیں ہیں ہم
हम आफ़ताब हैं फूंको से क्या बुझाते हो
किसी चराग़ की सूरत जले नहीं हैं हम
ہم آفتابؔ ہم پھونکوں سے کیا بجھاتے ہو
کسی چراغ کی صورت جلے نہیں ہیں ہم
#मोहसीन_आफ़ताब_केलापुरी
محسن آفتابؔ کیلاپوری