Ghazal
तू मोहब्बत से अगर साफ मुकर जाएगा
रोते रोते तेरा आशिक़ यूँही मर जाएगा
इस लिए रक्खे हैं सब आईने अंधे कर के
देख लेगा वो अगर ख़ुद को तो डर जाएगा
कोई तरकीब नई सोच अगर जीना है
सांस लेता ही रहेगा तो तू मर जाएगा
अपने सीने से मेरा दिल भी लगा कर रख ले
ये तेरे पास रहेगा तो सुधर जाएगा
सर को काँधे पे तेरे रख के मुझे रोने दे
बोझ सीने से मेरे ग़म का उतर जाएगा
वुसअतें दे के ख़यालों को बढ़ा ले मेयार
ख़ुद में सिमटा ही रहेगा तो बिखर जाएगा
चुप रहूंगा तो मेरी रूह भी मर जाएगी
सच बताया तो मेरे शानों से सर जाएगा
आज की रात भी गर नींद न आई मोहसिन
ख़्वाब उस का मेरे बिस्तर पे ही मर जाएगा
This poem is about:
Me
Our world