याद आते हैं वो पल...
याद आते हैं वो पल , जब नवोदय के हर एक पलों मे साथ थे यार जब हर एक फील्ड मे सुपेरस्टर थे वो लास्ट बेंच पर हमारा सिंहासन हम ही थे दुर्योधन हम ही सुशासन खाना खाने के लिए मैस मे जाते और साला एक ही थाली मे सबके हाथ फस जाते रौब था जैसे कोई महाराजा के हैं पोते पर जब पेसे खर्चे की बात आती तो साले सब के सब रोते वो परीक्षा से पहेले प्रभु का नाम भजते काश पहेले ही पढ़ लिया होता यही सोचते ही रहते वो सामने वाले ग्राउंड मे उदयगिरि की लड़कियां जब आती मानो बदन मे एलेक्ट्रिसिटी भर जाती कब सोचा था उन दिनो की आज हाल ऐसा होगा अब तो हर पल सोचते हैं क्या आने वाला कल उस कल जेसा होगा तब दोस्ती की कीमत का अंदाजा न था अब ऐसा लगता है उससे बड़ा कोई खजाना न था याद करता हूँ जब उन दिनों को तो ऐसा लगता है एक ऐसा समय था जीवन मे जब मे भी हसां करता था आज फिर वहीं गुजरे हुये पल याद आते है जब नवोदया मे साथ मस्ती किया करते थे याद आते हैं वो पल , जब नवोदय के हर एक पलों मे साथ थे