Pichli Raat
#पिछली_रात
रात कमरे में ही भटकती रही
नींद भी बे क़रार थी मेरी
ख़्वाब भी उंघने लगे सारे
मुझ को बिस्तर बुला रहा था बहोत
करवटें देखने लगी रस्ता
और तन्हाई शोर करने लगी
जागते जागते थका मैं भी
और फिर सुबह सुबह आख़िर कार
मैं तेरी याद ओढ़ कर सोया।
#मोहसिन_आफ़ताब_केलापुरी
This poem is about:
Me